नई दिल्ली: देश के पांच राज्यों में अगले दो से ढाई महीने के बीच विधानसभा चुनाव होने हैं। विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए सभी राजनीतिक दलों ने अपने - अपने हिसाब से अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। इसी बीच कार्तिक पूर्णिमा और प्रकाशपर्व के पावन अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐतिहासिक फैसला लिया और पिछले साल केंद्र सरकार के द्वारा लाये गए तीनों कृषि कानून को निरस्त करने का एलान कर दिया। प्रधानमंत्री के द्वारा की गयी घोषणा के बाद एक तरफ ख़ुशी का माहौल हैं वही दूसरी तरफ विरोधी दल चारों खाने चित हो गयी हैं।
दरअसल, 2014 में पहली बार नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने थे और उस समय से अब तक यह पहला मौका है जब केंद्र सरकार ने किसी कानून को पारित करने के बाद वापस लिया हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कृषि कानूनों को निरस्त करने का फैसला आगामी विधानसभा चुनावों से पहले एक बड़ा मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है। ऐसे में अब यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या कृषि कानून निरस्त होने से चुनावी राज्यों में सियासी समीकरण बदलेंगे?
पंजाब में अमरेंद्र सिंह के साथ हो सकता हैं गठबंधन
उत्तर प्रदेश, पंजाब समेत पांच राज्यों में अगले साल चुनाव हैं। ऐसे में सभी दलों ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। पंजाब में भी अगले साल चुनाव होने हैं और भाजपा फिलहाल राज्य में किसी दल के साथ गठबंधन में नहीं हैं, हालांकि कृषि कानून के निरस्त होने के तुरंत बाद ही कुछ ऐसी प्रतिक्रिया सामने आयी हैं जिसे यह अंदाजा लगाया जा रहा कि चुनाव पूर्व कैप्टेन अमरेंद्र सिंह की नयी पार्टी के साथ भाजपा का गठबंधन हो सकता हैं। इस बात के संकेत पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरेंद्र सिंह ने खुद दिया हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैसले पर अपनी ख़ुशी जाहिर की और कहा कि सरकार का फैसला स्वागत योग दलों को इस फैसले चाहिए। अगर पंजाब में भाजपा और अमरेंद्र सिंह की पार्ट्री का गठबंधन हो जाता है तो यह गठबंधन कांग्रेस के लिए नयी मुसीबत बन सकती हैं। क्योंकि पंजाब चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा किसान आंदोलन ही था। कृषि कानूनों की वजह से भाजपा के कई नेताओं के साथ बदसलूकी के मामले पंजाब में ही सबसे ज्यादा हुए थे।
उत्तरप्रदेश: 70 से अधिक सीटों का बदल सकता हैं समीकरण
देश के सबसे राज्य यूपी में भी कृषि कानून के वापसी का बढ़िया असर देखने को मिल सकता हैं क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 70 से अधिक सीटों पर किसान निर्णायक भूमिका में होते इन्ही के वोटों से हार और जीत होता हैं। दरअसल, 2014 चुनाव के बाद से ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश को भाजपा का गढ़ माना जाता हैं और इसकी बानगी भी 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 में हुए आम चुनाव के दौरान देखने को मिली थी। चुनाव आयोग के द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक 2017 के चुनाव में भाजपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 50 प्रतिशत से भी अधिक वोट मिले थे, लेकिन, किसान आंदोलन की वजह से भाजपा के खिलाफ उपजे व्यापक विरोध से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पार्टी काफी हद तक बैकफुट पर थी। किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आते हैं. जिसके चलते पश्चिमी यूपी में भाजपा के लिए मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही थीं। हालांकि पीएम मोदी के एक फैसले ने विपक्ष के सारे समीकरण को ध्वस्त कर दिया क्योंकि कृषि कानूनों के खत्म होने के साथ भाजपा की वापसी की संभावनाएं काफी बढ़ गई हैं।
उत्तराखंड में भी पड़ेगा असर
उत्तर प्रदेश से सटे उत्तराखंड में भी अगले साल चुनाव हैं। ऐसे में कयास लगाए जा रहे थे कि कृषि कानून को लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश से सटे उत्तरा खंड के कुछ विधासभा सीटों पर समीकरण बदल सकता हैं लेकिन चुनाव से ठीक पहले पीएम मोदी का यह मास्टर स्ट्रोक कही न कही विपक्ष के मुँह पर एक जोरदार तमाचा हैं और कानून के निरस्त होने से यहाँ भी अब भाजपा का पलड़ा पहले से थोड़ा मजबूत दिखने लगा हैं।
गौरतलब हो कि अगर कुल मिलाकर बात करे तो पीएम मोदी का यह निर्णय ऐसे वक़्त में आया हैं जब विपक्षी दल कृषि आंदोलन को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में अपना मुख्य हथियार बनाना चाह रही थी, लेकिन पीएम मोदी ने उनके मनसूबे पर पानी फेर दिया और तीनों कृषि कानून को निरस्त करने का एलान कर दिया। ऐसे में अब विपक्षी दलों के सामने एक नयी मुसीबत खड़ी हो गयी हैं क्योंकि पीएम मोदी के इस निर्णायक फैसले के बाद अब किसानों का झुकाव भाजपा के साथ - साथ उसके सहयोगी दलों के प्रति बढ़ जायेगा।