लखनऊ: उत्तर प्रदेश के 403 विधानसभा सीटों में से एक हैं कुंडा विधानसभा सीट, जहां रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया की बादशाहत पिछले 30 सालों से चली आ रही हैं। हालांकि चुनाव के नजदीक आते ही बड़ा सवाल खड़ा होने लगा हैं और राजनीतिक गलियारों में चर्चा भी काफी तेज हो गयी हैं कि राजा भैया का भविष्य किस ओर जायेगा। यहीं नहीं उनके पार्टी का भविष्य क्या होगा। जो कार्यकर्ता बड़े ही उम्मीद के साथ तैयारिओं में जुटे हैं उनका क्या होगा।
चुनाव पूर्व 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का वादा करने वाले राजा भैया अब समझ गए हैं कि बिना योगी के आशीर्वाद से उनकी नैया पार नहीं होने वाली हैं। क्योंकि उत्तर प्रदेश के राजनितिक हालातों को ध्यान में रखे तो यह साफ़ हैं किसी भी छोटे दलों को जीत तभी मिली हैं, जब उनका गठबंधन किसी बड़े राजनीतिक दलों के साथ हुआ हो। ऐसे में राजा भैया अपनी सीट तो निकाल सकते हैं, लेकिन बाकी के बचे सीटों पर जीतना काफी मुश्किल होगा। ऐसे में बड़ा सवाल उठने लगा हैं कि राजा भैया किसकी अंगुली पकड़ कर चुनाव में उतरेंगे।
हम आपको बता दे कि राजा भैया के पास कुछ जिलों में ठाकुर जातियों का बढ़िया वोट हैं, हलांकि एक जातियों के वोट से कोई भी दल चुनाव नहीं जीत सकती हैं। जातिगत समीकरण के मुताबिक बसपा के पास दलित समुदाय , सपा के पास यादवों का और राजा भैया के पास ठाकुरों का वोट हैं और शायद यही कारण हैं कि राजा भैया के नाम पर दलों को प्रतापगढ़ के बाहर मुश्किलों का सामना करना पर सकता हैं।
अखिलेश से पहले ही कर चुके हैं दुश्मनी का एलान
सियासत में सभी दलों के पास कई विकल्प होते हैं लेकिन राजा भैया के पास एक परेशानी हैं और वह हैं खुल कर दोस्ती और खुल कर दुश्मनी। और शायद यहीं कारण हैं कि राजा भैया ने पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ खुल कर दुश्मनी का एलान कर दिया हैं। राजा भैया मायावती के साथ जा नहीं सकते है और कांग्रेस से उनकी कोई ज्यादा बनती हैं। ऐसे में अब उनके पास एक ही विकल्प हैं जिससे वह हाथ मिला कर वह अपनी बादशाहत और अपने पार्टी के वजूद को बचाने की कोशिश करेंगे और वह दल हैं भाजपा।
राजा भैया अखिलेश और मुलायम सिंह यादव के सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं लेकिन 2018 में हुए राज्यसभा चुनाव के दौरान अखिलेश यादव और राजा भैया के बीच कुछ अनबन हुई और दोनों के रिश्ते में दरार आ गयी। और यही वह समय था जब राजा भैया ने खुद की पार्टी बनायीं थी और उसका नाम रखा था जनसत्ता दल लोकतान्त्रिक। राजनितिक पंडितों के मुताबिक राजा भैया ने अपनी पार्टी का गठन भाजपा के आशीर्वाद से ही बनायीं थी। दरअसल, भाजपा चाहती थी कि राजा भैया उत्तर प्रदेश के उन विधानसभा सीटों पर अपनी जीत दर्ज करें जहाँ राजपूतों की संख्या काफी ज्यादा हैं। इसके पीछे भाजपा की मंशा थी कि अगर चुनाव के पश्चात भाजपा को कुछ विधायकों की जरूरत पड़ी तो राजा भैया का समर्थन आसानी से मिल सकता हैं।
हालांकि राजा भैया को यह मालूम हैं कि उनकी जीत राजपूतों के वोटों से नहीं बल्कि यादवों और मुस्लिमों के वोट से होती हैं। इसी वजह से राजा भैया एक तरफ जहां अखिलेश को अपना दुश्मन मानते हैं वहीं मुलायम सिंह यादव को आज भी झुक कर प्रणाम करते हैं। राजा भैया ऐसा इसलिए करते है क्योंकि वह नहीं हैं चाहते कि यादव और मुस्लिम वोटर्स को नाराज किया जाए। समीकरण के मुताबिक अगर सपा कुंडा विधानसभा सीट से किसी मुस्लिम या यादव उम्मीदवार को मैदान में उतार दे तो राजा भैया के लिए खतरे की घंटी बज सकती हैं। ऐसे में राजा भैया चुनाव से पूर्व बड़े ही सोच समझ कदम उठा रहे हैं ताकि तीन दसकों की बादशाहत मिनटों में ना खतम हो जाये।